Wednesday, September 2, 2009

शुरुआत का कोई अंत नहीं है

अंत शुरुआत का नहीं होता
अंत शुरुआत के लिए है
अंत शुन्य है
एक धरातल या
नयी शुरुआत की ज़मीं
अंत मुकम्मल खात्मा नहीं
अगर कुछ ख़त्म होता है
तो उस खात्मे में
नए आगाज़ की एक रूह
सांस भरती है
जैसे रात के अंत में
भोर का रौशन उफक
होता है अयाँ
और होती है शुरुआत
एक नए दिन की......
यूँ है कि
शुरुआत का कोई अंत नहीं

3 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत सुन्दर रचना है...

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया !!

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

मैं केवल कहूंगा-अंत मुकम्मल खात्मा नहीं