अब तक उसे मालूम थी आयतें पढ़ा था कुरान उसने मगर उस दिन जब तुम्हारे होंट का लम्स उसके आबनूसी जिस्म को छू कर गुज़रा शलोक की आवाज़ आई
Sunday, August 16, 2009
बाप ने जोड़े थे कई ईंटे और बनाया था एक मकान ये उसके ख्वाबों का घर था जहाँ थे उसके बच्चे जो उसकी आँखों के सामने घर के आँगन में खेलते धीरे धीरे हो रहे थे जवान
बाप मर चूका है और बच्चे हो चुके है जवान बाप के ख्वाबों का घर अब उसके जवान बच्चे कर रहे हैं नीलाम क्यूंकि उनकी बीवियों को यह घर लगता है छोटा
माँ खामोश है और देख रही है अपने पति के ख्वाबों का बलात्कार यह जानते हुए भी कि उस बड़े मकान में मिलेगा उसे सिर्फ एक कोना
तसव्वुर की सीढियाँ चढ़ कर ख्याल के कमरे में जब भी दाखिल होता हूँ याद की अलमारी में तुम्हें पता हूँ तुम्हारे यादें बोझ नहीं हैं मगर आगे बढ़ते रहने के लिए तुम्हारी यादों से मुंह मोड़ना अब ज़रूरी है क्यूंकि सारी उम्र तड़प कर मैं जी नहीं सकता तो सुनो जाना! सीढियाँ हटा रहा हूँ कमरे की दीवारें और छत गिरा रहा हूँ कबाड़ में रखने जा रहा हूँ अलमारी