Thursday, August 20, 2009

अब तक
उसे
मालूम थी आयतें
पढ़ा था कुरान
उसने
मगर उस दिन
जब
तुम्हारे होंट का लम्स
उसके आबनूसी जिस्म को छू कर गुज़रा
शलोक की आवाज़ आई

3 comments:

अवनीश मिश्रा said...

बहुत खूब शाहनवाज भाई...बहुत अच्छा लिखा है..उम्मीद है लगातार लिखते रहिएगा.

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

ठीक किया शाहनवाज, आपने नज्म का टाइटल सेकुलर प्याली नहीं रखा। चाय की प्याली को इस अर्थ में मैंने महसूस नहीं किया था। आबनूसी और लम्स को समझने के बाद ही नज्म की गहराई में गोता लगा सका।

Anonymous said...

Bahut sundar bhaav.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।