वह अपनी आदत से कब बाज़ आये है
देख कर हालत मेरी मुस्कुराये है
हुस्न की फितरत में फरेब है लोगों
और मासूम दिल मात खाए है
होश नहीं, सब्र नहीं, ताब नहीं
तो फिर क्यूँ न मेरी जान जाए है
उसकी सारी बातें बिलकुल झूटी हैं
पर कमबख्त ये दिल मान जाये है
इस शहर में गर हैं सब अहबाब मेरे
तू फिर कौन है जो घात लगाये है
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1 comment:
वाह साहेब, देर आए दुरूस्त आए। मजा आ गया। सबसे अच्छा लगा-
हुस्न की फितरत में फरेब है लोगों
और मासूम दिल मात खाए है
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