Sunday, August 16, 2009

बाप ने जोड़े थे
कई ईंटे
और बनाया था एक मकान
ये उसके ख्वाबों का घर था
जहाँ थे उसके बच्चे
जो उसकी आँखों के सामने
घर के आँगन में खेलते
धीरे धीरे हो रहे थे जवान

बाप मर चूका है
और बच्चे हो चुके है जवान
बाप के ख्वाबों का घर
अब उसके जवान बच्चे
कर रहे हैं नीलाम
क्यूंकि उनकी बीवियों को
यह घर लगता है छोटा

माँ खामोश है
और देख रही है
अपने पति के ख्वाबों का बलात्कार
यह जानते हुए भी
कि उस बड़े मकान में
मिलेगा उसे सिर्फ एक कोना

11 comments:

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

शहनवाज, कुछ दिनों से मै भी उधेड़बुन में था कि पिता के अरमानों की व्याख्या बेटे कैसे करते हैं। हम सब जो बेटे हैं, वे क्या कर रहे हैं। मैं खुद इन बातों में खो जाता हूं। खासकर पिता शब्द के करोड़ों चरित्रों को डिस्क्राइब करते हुए।

यह कविता उसी श्रृखंला का हिस्सा मालूम होती है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर एक के अंदर एक पिता जीवित होता है जो छटपटाता भी रहता है।

आपने मां को भी जोड़ा, जो बेहद जरूरी (कंटेट) है। सच कहूं शहनवाज ऐसी कविताओं को पढ़ते वक्त कभी-कभी आत्मग्लानी भी होती है, जैसा आपने कहा-
माँ खामोश है
और देख रही है
अपने पति के ख्वाबों का बलात्कार।

मै चुप हूं, इसे पढ़ने के बाद। पिता को असमानताओं के बीच समानता की तलाश करते देख रहा हूं।

शुक्रिया
पुन्श्च- अपने अंदर पिता को खोजें।और हां,अब जब कविता के जरिए बातों क पेश कर ही रहें हैं तो कविताओं में आवारागर्दी और कुछ तथाकथित गालियों को डालकर एक चासनी भी बनाने की कोशिश करें क्योंकि एक्सप्रेसन के इस माध्यम के साथ ईमानदारी बरतनी बेहद जरूरी है, आखिर हम सब के अंदर तो कमीनी चीज तो है हीं।

Unknown said...

tum me kavita likhne ka shaur hoga mujhe nahi pata tha. mai itna janti thi ki tum bas shyari ki kar sakte, wo bhi chori ki. achha hai lage raho...

Vipin Behari Goyal said...

यही दुनिया का दस्तूर है

Chandan Kumar Jha said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति.

स्वागत है.


गुलमोहर का फूल

Ishwar said...

आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं स्वागत है चिटठा जगत में.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

आपने हिंदी में अच्छा लिखा पर यह चिंदी का प्रसाद क्यों?:) स्वागत है॥

Unknown said...

Bahut Barhia...Isi Tarah likhte rahiye...

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Mithilak Gap... Maithili Me

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Aapke Bheje Photo

उम्मीद said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
गार्गी

संजय भास्‍कर said...

BEHTARIN RACHNA
AATI SUNDER

इस्लामिक वेबदुनिया said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है

M VERMA said...

कि उस बड़े मकान में
मिलेगा उसे सिर्फ एक कोना
जी हाँ! यही सच है. माँ को एक कोना भी मिल जाये तो -----
सच तो सच है
बहुत खूब आपने उस मानसिकता को उकेरा है.