अंत शुरुआत का नहीं होता
अंत शुरुआत के लिए है
अंत शुन्य है
एक धरातल या
नयी शुरुआत की ज़मीं
अंत मुकम्मल खात्मा नहीं
अगर कुछ ख़त्म होता है
तो उस खात्मे में
नए आगाज़ की एक रूह
सांस भरती है
जैसे रात के अंत में
भोर का रौशन उफक
होता है अयाँ
और होती है शुरुआत
एक नए दिन की......
यूँ है कि
शुरुआत का कोई अंत नहीं
Wednesday, September 2, 2009
Tuesday, August 25, 2009
Thursday, August 20, 2009
Sunday, August 16, 2009
बाप ने जोड़े थे
कई ईंटे
और बनाया था एक मकान
ये उसके ख्वाबों का घर था
जहाँ थे उसके बच्चे
जो उसकी आँखों के सामने
घर के आँगन में खेलते
धीरे धीरे हो रहे थे जवान
बाप मर चूका है
और बच्चे हो चुके है जवान
बाप के ख्वाबों का घर
अब उसके जवान बच्चे
कर रहे हैं नीलाम
क्यूंकि उनकी बीवियों को
यह घर लगता है छोटा
माँ खामोश है
और देख रही है
अपने पति के ख्वाबों का बलात्कार
यह जानते हुए भी
कि उस बड़े मकान में
मिलेगा उसे सिर्फ एक कोना
कई ईंटे
और बनाया था एक मकान
ये उसके ख्वाबों का घर था
जहाँ थे उसके बच्चे
जो उसकी आँखों के सामने
घर के आँगन में खेलते
धीरे धीरे हो रहे थे जवान
बाप मर चूका है
और बच्चे हो चुके है जवान
बाप के ख्वाबों का घर
अब उसके जवान बच्चे
कर रहे हैं नीलाम
क्यूंकि उनकी बीवियों को
यह घर लगता है छोटा
माँ खामोश है
और देख रही है
अपने पति के ख्वाबों का बलात्कार
यह जानते हुए भी
कि उस बड़े मकान में
मिलेगा उसे सिर्फ एक कोना
Wednesday, August 12, 2009
यादें बोझ नहीं हैं मगर.......
तसव्वुर की सीढियाँ चढ़ कर
ख्याल के कमरे में
जब भी दाखिल होता हूँ
याद की अलमारी में तुम्हें पता हूँ
तुम्हारे यादें बोझ नहीं हैं मगर
आगे बढ़ते रहने के लिए
तुम्हारी यादों से मुंह मोड़ना अब ज़रूरी है
क्यूंकि सारी उम्र तड़प कर मैं जी नहीं सकता
तो सुनो जाना!
सीढियाँ हटा रहा हूँ
कमरे की दीवारें और छत गिरा रहा हूँ
कबाड़ में रखने जा रहा हूँ अलमारी
ख्याल के कमरे में
जब भी दाखिल होता हूँ
याद की अलमारी में तुम्हें पता हूँ
तुम्हारे यादें बोझ नहीं हैं मगर
आगे बढ़ते रहने के लिए
तुम्हारी यादों से मुंह मोड़ना अब ज़रूरी है
क्यूंकि सारी उम्र तड़प कर मैं जी नहीं सकता
तो सुनो जाना!
सीढियाँ हटा रहा हूँ
कमरे की दीवारें और छत गिरा रहा हूँ
कबाड़ में रखने जा रहा हूँ अलमारी
Sunday, August 9, 2009
चंद शेर उर्फ़ एक ग़ज़ल
वह अपनी आदत से कब बाज़ आये है
देख कर हालत मेरी मुस्कुराये है
हुस्न की फितरत में फरेब है लोगों
और मासूम दिल मात खाए है
होश नहीं, सब्र नहीं, ताब नहीं
तो फिर क्यूँ न मेरी जान जाए है
उसकी सारी बातें बिलकुल झूटी हैं
पर कमबख्त ये दिल मान जाये है
इस शहर में गर हैं सब अहबाब मेरे
तू फिर कौन है जो घात लगाये है
देख कर हालत मेरी मुस्कुराये है
हुस्न की फितरत में फरेब है लोगों
और मासूम दिल मात खाए है
होश नहीं, सब्र नहीं, ताब नहीं
तो फिर क्यूँ न मेरी जान जाए है
उसकी सारी बातें बिलकुल झूटी हैं
पर कमबख्त ये दिल मान जाये है
इस शहर में गर हैं सब अहबाब मेरे
तू फिर कौन है जो घात लगाये है
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