प्यार हाड मांस के इंसानों और ईंट पत्थरों से भी ज्यादा वास्तविक और भौतिक (real) होता है ये इस ग़ज़ल को पढ़ कर पता चलता है ..आदमी के बिछड़ने से लोगों को उतनी तक्ल्लीफ़ नहीं होती जितनी तकलीफ प्यार को खो देने से होती है..वैसे ये बात मेरे समझ में कभी नहीं आयी..
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प्यार हाड मांस के इंसानों और ईंट पत्थरों से भी ज्यादा वास्तविक और भौतिक (real) होता है ये इस ग़ज़ल को पढ़ कर पता चलता है ..आदमी के बिछड़ने से लोगों को उतनी तक्ल्लीफ़ नहीं होती जितनी तकलीफ प्यार को खो देने से होती है..वैसे ये बात मेरे समझ में कभी नहीं आयी..
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